साभार: द हिंदू |
भारतीय राज्यों में विकास का प्रतिमान बदल रहा है। उत्तर 2005-06 में कई
पिछड़े हुए राज्य पहले से बेहतर कर रहे हैं। बिहार , उडीसा , असम, राजस्थान,
छत्तीसगढ, मध्यप्रदेश , उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश के कुछ हिस्से ने सामाजिक-आर्थिक
क्षेत्र में सुधार को प्रमाणित किया है। बेहतर विकास के परिणामों के लिए विस्तृत
अजेंडा के साथ कई अधिकार आधारित नीतियों और पुर्नवितरित नीतियों के पहल से ऐसा बडे
स्तर पर संभव हुआ। यूपीए सरकार की गरीब और अमीर , ग्रामीण और शहरी , पिछड़े और
विकसित क्षेत्रों के बीच अंतर को कम करने के लिए और भारत निर्माण योजना, इंदिरा
आवास योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, सर्वशिक्षा अभियान,राष्ट्रीय
स्वास्थ्य मिशन जैसी कुछ उल्लेखनीय नीतियां हैं जो भारत में पिछले दस साल में
आधारभूत संरचना , गरीबी घटाने , शिक्षा और स्वास्थ्य को कहीं अधिक संतुलित करने के लिए शुरु की गयीं ।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम( मनरेगा) गरीबी हटाने
के लिए भारत की एक और ऐतिहासिक पहल है, जिसकी
शुरुआत वर्ष 2005 में हुई। जो 2006 में प्रभावी तरीके से अस्तित्व में आया। यह अधिनियम भारत के गांवो की बेरोजगार की बड़ी चुनौतियों को अधिकार आधारित ढांचे के तहत और
ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्यों को को 100 दिनों के रोजगार ( अकुशल हस्त- कार्य)
की गारंटी देता है। बड़े संदर्भों में ,यह
अधिनियम भारत के स्थानीय और ग्रामीण-अर्थव्यवस्था के दीर्घकालिक स्थिर विकास के
लिए आजीविका की सुरक्षा , सामाजिक सुरक्षा और पूंजीगत लेखा के निर्माण पर लक्ष्य
करता है।
मनरेगा की शुरुआत भारत के 200 सबसे ज्यादा पिछड़े हुए जिलों से हुआ और मनरेगा
ने विस्तार पाते हुए 7 साल की छोटी सी अवधि में वर्ष 2013 तक सभी 644 जिलों को दायरे
में ले लिया। जिसमें 6576 ब्लॉक और 778134 गांव है। प्रतिदिन प्रति व्यक्ति का
औसत वेतन 132.6 रुपए हैं। अखिल भारतीय स्तर पर प्रतिदिन का औसत वेतन दर दोनों ही
क्षेत्रों (कृषि और गैर- कृषि) में काफी हद
तक बेहतर हुआ है। भारत के ग्रामीण इलाकों में यह
अकल्पनीय था लेकिन मनरेगा के जरिए स्त्री और पुरुषों दोनों का ही समान वेतन
सुनिश्चित हुआ है। इस तरह से वेतन दरों में बढोत्तरी ने ग्रामीण भारत में उपभोग के
तरीकों को बदलने में मदद की है। इसी तरह एनएसएसओ के अनुसार गांवो में प्रतिमाह
उपभोग पर व्यय की दर 2004-05 के रु. 579.17 से वर्ष 2009-10 में रु. 953.05 और
वर्ष 2011-12 में 1287.17 तक बढ गया है। भोजन की खपत का हिस्सा , अनाज, दूध और दूध से बने
उत्पादों, सब्जी, पेय पदार्थ और प्रसंस्कृति खाद्य में 53% से 10 %,
8 % , 6% और 8 % नीचे जा चुका है।
जबकि यह गैर-खाद्य वर्ग में सभी मदों जैसे कपड़े ( 8%), स्वास्थ्य (7 %) और शिक्षा (7%) में ज्यादातर समान है। यह
परिदृश्य उत्साह बढाने वाला है जो ग्रामीण भारत में रहन-सहन की बेहतरी को दिखाता है।
भारत के गांवों में गरीबी का अनुपात वर्ष 2009-10
के 33.8% (2782.1 लाख) और वर्ष 2004-05 में
42%
( 325.1 लाख) से वर्ष
2011-12 में 25.70 % ( 2166.58 लाख व्यक्ति) तक नीचे आ गया है। मनरेगा दुनिया का
पहला ऐसा अनोखा अधिनियम है जो वर्ष
2013-14 में 732 लाख ग्रामीण जनसंख्या को दायरे में ले रहा है। यह अधिकतर कमजोर और
हाशिए के वर्ग को लक्ष्य करता है जिसमें कुल उपलब्ध रोजगार में महिला 50 % ( 351 लाख), अनसूचित जाति
23 % ( 167 लाख) और
अनसूचित जनजाति की हिस्सेदारी 18 % ( 129 लाख) है।
इस पैमाने और विस्तार के साथ मनरेगा ने निश्चित ही ग्रामीण भारत की चुनौतियों
का सामना किया है। हालांकि कई समीक्षाओं में यह कहा गया है कि मनरेगा रोजगार देने
में असफल हुआ है ।इसे प्राकृतिक संसाधन के प्रबंधन को ताकत देने के उद्देश्य में अकाल,
वनों की कटान, मिट्टी के कटाव से जुड़े काम और दीर्घकालिक स्थायी विकास के ढांचे
के जरिए सर्वोत्तम उपलब्धियां नहीं मिली हैं। मनरेगा के तहत वर्ष 2012-13 में
स्वीकृत काम 70.50 लाख था , जिसमें केवल 10.21 लाख (15%) परियोजना पूरी हुई है।
जिसमें जल-संरक्षण 60 %, सिंचाई 12 % , ग्रामीण संपर्क 17% , भूमि विकास 8 % और ग्रामीण स्वच्छता 0.22% है। यह भी देखा गया है कि यह योजना जो अप्रशिक्षित
कामगारों को दायरे में लेती है , आगे के लिए किसी भी तरह की कुशलता का विकास नहीं
करता है। इसे और अधिक लाभकारी बनाने के लिए , कामगारों की ताकत को कुछ
निश्चित कौशल विकास कार्यक्रम के जरिए उभारा जा सकता है। जो बाद में कम से कम
स्वरोजगार के अवसरों के रुप में बदल सकता है। वित्तीय अनियमितता के संबंध में , यह
देखा गया है और कैग की रिपोर्ट यह प्रमाणित भी करती है कि भारत के कुछ राज्यों में
मनरेगा फंड में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां हैं। क्योंकि योजना की राशि में बृद्धि होती है
इसलिए आवश्यकता है कि राज्यों की कड़ी निगरानी हो और पहले से सक्रिएता रहे । उदाहरण
के लिए वर्ष 2012-13 में कुल धन की आवंटन
राशि , 75% की खर्च के साथ प्रति वर्ष
7 %
की दर से बढकर 39735.4
करोड़ रुपए हो गयी है। यह राशि वर्ष 2011-12 में 37072.7 करोड़ रुपए थी। राज्य-
स्तर पर वेतन और रोजगार की उपलब्धता में गंभीर समस्याएं हैं। अंतर्राज्जीय स्तर पर
भी मनरेगा के परिणामों में कई समस्याएं हैं। तमिलनाडु में वर्ष 2012-13 में सबसे ज्यादा 64.8
लाख परिवारों को और पंजाब में सबसे कम 1.7 लाख परिवारों को रोजगार मिला। इसी वर्ष
रोजगार में महिलाओं की हिस्सेदारी राष्ट्रीय
औसत 53% के साथ, केरल में 94% और उत्तरप्रदेश में 19% थी। इसलिए सामाजिक और
आर्थिक लेखा-जांच को अधिक
कठोर और राज्यों की भूमिका क्रियान्वयन के स्तर पर नियमित होने की जरुरत है। अंत
में, मनरेगा जैसे अधिकार आधारित रोजगार की नीतियों से सर्वोत्तम विकास के परिणाम पाने के लिए संरचनात्मक
स्तर पर निश्चित ही इसमें बदलाव की जरुरत
है ताकि इसमें ग्रामीण भारत की आवाज को अधिक से अधिक शामिल हो।
-राखी भट्टाचार्य
स्रोत: वार्षिक रिपोर्ट , ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार
एनएसएसओ रिपोर्ट, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय, भारत सरकार
स्रोत: वार्षिक रिपोर्ट , ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार
एनएसएसओ रिपोर्ट, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय, भारत सरकार
वार्षिक रिपोर्ट, श्रम मंत्रालय , भारत सरकार
प्रेस नोट , योजना आयोग , भारत सरकार
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